खामोशी
POEMSHINDIMAY 2024
5/31/20241 min read


II खामोशी भी कितनी अजीब होती हैं ll
झील के किनारे डूबते हुए सूरज के साथ
मैं गिनने लगी खामोशियों की आहटे।
पास बैठे तुम्हारी नज़र थी सिर्फ झील के किनारे लगी कश्ती पे।
चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था।
ना तुम बोल रहे थे ना मैं।
फ़िर भी हम एक दूसरे की बातें सुन रहे थे।।
अनगिनत फरियादे, हसरतें, पुराने किस्से
ना जाने कितनी दफनाई गई कहानियाँ,
मेरे ख्यालों में लहर बन कर मुझे मेरे ही ख्यालों से दूर कही ले जा रहे थे।
शायद उस जगह, उस वक्त
जहाँ से हमने अपनी कहानियाँ रचना शुरू की थी ।
कितने किरदार मिले, कितने आए, कितने बदल गए,
और हमारी कहानी भी एक मोड़ से दूसरे मोड़ तक चलती गई ।।
एक कहानी से शुरू होकर कब दो बन गईं
पता ही नही चला।
मानो जैसे वृत्त के एक ही बिंदु से शुरू होकर दो विपरीत दिशा में हमारी कहानी चल रही थी।।
कोशिशे थी एक बिंदु में फ़िर से मिले।
पर हर कोशिश के सामने हमारी अना की जीत होती थी।।
धीरे धीरे वह वृत्त कभी न मिलने वाली दो समांतर रेखाऐं बन रही थी।।
हम उन्हीं दो रेखाओं से एक दूसरे को देख
अपनी जिंदगी मुक्कमल कर रहे थे।।
आज कहानियाँ तो बहुत हैं
पर अल्फाजों की कमी है ।
खामोशी भी कितनी अजीब होती है।
कुछ ना कहकर भी
बहुत कुछ कह जाती है ।।
--Manisha Keshab